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इ॒मा उ॑ वां भृ॒मयो॒ मन्य॑माना यु॒वाव॑ते॒ न तुज्या॑ अभूवन्। क्व१॒॑त्यदि॑न्द्रावरुणा॒ यशो॑ वां॒ येन॑ स्मा॒ सिनं॒ भर॑थः॒ सखि॑भ्यः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

imā u vām bhṛmayo manyamānā yuvāvate na tujyā abhūvan | kva tyad indrāvaruṇā yaśo vāṁ yena smā sinam bharathaḥ sakhibhyaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ॒माः। ऊँ॒ इति॑। वा॒म्। भृ॒मयः॑। मन्य॑मानाः। यु॒वाऽव॑ते। न। तुज्याः॑। अ॒भू॒व॒न्। क्व॑। त्यत्। इ॒न्द्रा॒व॒रु॒णा॒। यशः॑। वा॒म्। येन॑। स्म॒। सिन॑म्। भर॑थः। सखि॑ऽभ्यः॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:62» मन्त्र:1 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:9» मन्त्र:1 | मण्डल:3» अनुवाक:5» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अठारह ऋचावाले बासठवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में मित्र, अध्यापक और उपदेशकों के विषय को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे अध्यापक और उपदेशक ! जो (वाम्) आप दोनों के (इमाः) ये वर्त्तमान (मन्यमानाः) आदर किये गये (भृमयः) घूमने आदि (युवावते) आपकी रक्षा करनेवाले के लिये (तुज्याः) हिंसा करने के योग्य (न) नहीं (अभूवन्) होवैं वैसे करिये और हे (इन्द्रावरुणा) बिजुली और वायु के सदृश वर्त्तमान ! (येन) जिस यश से (वाम्) आप दोनों के (सखिभ्यः) मित्रों के लिये (सिनम्) अन्न आदि को (स्म) ही (भरथः) धारण करते हो (त्यत्) वह (यशः) यश (उ) ही (क्व) कहाँ है ॥१॥
भावार्थभाषाः - जो अध्यापक और उपदेशक लोग वायु और बिजुली के सदृश उपकार करनेवाले कीर्त्ति से युक्त और प्रिय आचरण करनेवाले होवैं, उनके लिये स्नेह से अन्न आदि देना और उनके साथ सदा ही मित्रता की रक्षा करनी चाहिये ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ मित्राध्यापकोपदेशकविषयमाह।

अन्वय:

हे अध्यापकोपदेशकौ या वामिमा मन्यमाना भृमयो युवावते तुज्या नाभूवन् तथा कुरुतम्। हे इन्द्रावरुणा येन वां सखिभ्यः सिनं स्म भरथस्त्यद्यशो वामु क्वास्ति ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इमाः) (उ) (वाम्) युवयोः (भृमयः) भ्रमणानि (मन्यमानाः) (युवावते) त्वां रक्षते (न) निषेधे (तुज्याः) हिंसनीयाः (अभूवन्) भवेयुः (क्व) कस्मिन् (त्यत्) तत् (इन्द्रावरुणा) विद्युद्वायू इव वर्त्तमानौ (यशः) कीर्त्तिः (वाम्) युवयोः (येन) (स्म) एव। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (सिनम्) अन्नादिकम्। सिनमित्यन्नना०। निघं० २। ७। (भरथः) (सखिभ्यः) मित्रेभ्यः ॥१॥
भावार्थभाषाः - येऽध्यापकोपदेशका वायुविद्युद्वदुपकारकाः कीर्त्तिमन्तः प्रियाचरणाः स्युस्तेभ्यः स्नेहेनाऽन्नादिकं देयम्। तैस्सह सर्वैर्मित्रता च रक्षणीया ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात मित्र, अध्यापक, शिकणारे, श्रोते, उपदेशक, परमात्मा, विद्वान, प्राण व उदान इत्यादी गुणांचे वर्णन करण्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची या पूर्वीच्या सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.

भावार्थभाषाः - जे अध्यापक व उपदेशक वायू व विद्युतप्रमाणे उपकार करणारे, कीर्तियुक्त, प्रिय आचरण करणारे असतात, त्यांच्यासाठी स्नेहाने अन्न इत्यादी द्यावे व त्यांच्याबरोबर सदैव मैत्री करावी. ॥ १ ॥